कविता : लाइंस फॉर टफ टाइम्स

रामधारी सिंह दिनकर, इन महापुरूष की वंदना करना काफी कठिन है l इन्होंने, हिंदी काव्य जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी है l इनके, द्वारा लिखी गयी कविताएं वीर रस से भरपूर है l जब भी व्यक्ति घोर निराशा में डूब जाये या उस पर मायूसी छा जाये l इनकी कविता का एक एक छंद, उस के जीवन मे ऊर्जा का ऐसा संचार कर देगी की, वो व्यक्ती मृत्युशय्या से भी उठ बैठे l इतनी जिवंत हैं, इनकी कविताएं l

प्रस्तुत हैं, उनके काव्यांश, रश्मिरथी से एक छोटा सा हिस्सा l इसका आनंद ले l

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते,

विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं।
मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं,

जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को।

है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में
खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़।

मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।
गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर,

मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो।
बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है।

पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड,झरती रस की धारा अखण्ड,
मेंहदी जब सहती है प्रहार,बनती ललनाओं का सिंगार।

जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं ।

वसुधा का नेता कौन हुआ ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ ? नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ ?

जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर नाम किया।
जब विघ्न सामने आते हैं, सोते से हमें जगाते हैं,

मन को मरोड़ते हैं पल-पल, तन को झँझोरते हैं पल-पल।
सत्पथ की ओर लगाकर ही, जाते हैं हमें जगाकर ही।

वाटिका और वन एक नहीं, आराम और रण एक नहीं।
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड, पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।

वन में प्रसून तो खिलते हैं, बागों में शाल न मिलते हैं।
कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर, छाया देता केवल अम्बर,

विपदाएँ दूध पिलाती हैं, लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं, वे ही शूरमा निकलते हैं।

बढ़कर विपत्तियों पर छा जा, मेरे किशोर! मेरे ताजा!
जीवन का रस छन जाने दे, तन को पत्थर बन जाने दे।

तू स्वयं तेज भयकारी है, क्या कर सकती चिनगारी है ?

धन्य हो ऐसे रचनाकार, धन्य हो l

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