मकान मालिकों के हित में ऐतिहासिक फैसला l

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि मकान मालिक को अब किरायेदार को निकालने के लिए ‘वास्तविक आवश्यकता’ साबित करने की जरूरत नहीं है

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है, कि उत्तर प्रदेश शहरी परिसर अधिभोग अधिनियम, 2021 के तहत, किसी मकान मालिक को अब किरायेदार को निकालने के लिए ‘वास्तविक आवश्यकता’ साबित करने की जरूरत नहीं है

क्या बदल गया है :

  • पहले के उत्तर प्रदेश शहरी भवन (लेटिंग, किराया और बेदखली) अधिनियम, 1972 में, मकान मालिक को यह साबित करना होता था कि उन्हें किराए पर दिए गए घर की ‘वास्तविक आवश्यकता’ है, जैसे खुद रहने के लिए या किसी रिश्तेदार के लिए

  • लेकिन नए अधिनियम के तहत, मकान मालिक को केवल यह साबित करना होता है कि उन्हें उस संपत्ति की जरूरत है, चाहे वह वर्तमान रूप में हो या ध्वस्त करने के बाद.

अन्य महत्वपूर्ण बातें:

  • मकान मालिक को यह साबित करने की भी जरूरत नहीं है कि किरायेदार को निकालने से होने वाली कठिनाई, मकान मालिक की जरूरत से ज्यादा है
  • इस फैसले से किरायेदारों की चिंता बढ़ सकती है, क्योंकि अब मकान मालिक उन्हें बिना ज्यादा कारण बताए निकाल सकते हैं

मामले का सार :

उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय का निर्णय ।

मामले का नाम: Mahesh Chandra Agarwal v. Rent Tribunal And 2 Others

इस मामले में, मकान मालिक ने किरायेदार को बेदखल करने के लिए एक आवेदन दायर किया था। मकान मालिक ने तर्क दिया कि उसे किराए के मकान की आवश्यकता है, ताकि वह अपने व्यवसाय को चला सके।

किरायेदार की मुख्य शिकायत यह थी,कि बेदखली का मामला दायर करने से पहले उसे कोई सूचना नहीं मिली थी।अथवा मकान मालिक की आवश्यकता “वास्तविक” नहीं है, क्योंकि मकान मालिक अपने व्यवसाय को चलाने के लिए अन्य स्थानों का उपयोग कर सकता है।

निचली अदालत ने मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया।

उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।

  • उच्च न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश शहरी परिसर अधिभोग अधिनियम, 2021 के तहत, मकान मालिक को किराए के मकान की आवश्यकता को “वास्तविक” साबित करने की आवश्यकता नहीं है।

  • उच्च न्यायालय ने कहा कि मकान मालिक को केवल यह साबित करना होगा कि उन्हें किराए के मकान की आवश्यकता है, चाहे वह वर्तमान रूप में हो या ध्वस्त करने के बाद।

  • उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि मकान मालिक को यह साबित करने की आवश्यकता नहीं है कि किरायेदार को निकालने से होने वाली कठिनाई मकान मालिक की आवश्यकता से ज्यादा है।

फैसले का संभावित प्रभाव:

इस फैसले से किरायेदारों की चिंता बढ़ सकती है। इस फैसले के बाद, मकान मालिक किरायेदारों को बिना ज्यादा कारण बताए निकाल सकते हैं।

इस फैसले से किरायेदारों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। किरायेदारों को अब यह साबित करना मुश्किल हो सकता है कि मकान मालिक की आवश्यकता “वास्तविक” नहीं है।

इस फैसले ने निस्संदेह, मकान मालिकों को काफ़ी राहत दी है, अथवा अवैध कब्जों से बचाया है।

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